अनजाने लोगों के बीच हम अक्सर तुझको ढूँढ़ते है,
तेरे साथ रहकर कभी हम तुझमें खुद को ढूँढ़ते है |
पहले तो इक अंश था तेरा,अब पूरा पहचान गए,
कली प्यार की बोई थी अब पूरा पौधा ढूँढ़ते है|
आँखों से अब किसको देखे हमको ये मालूम नहीं,
जिसमें देखे तुझको देखे सबमें तुझको ढूँढ़ते है|
तेरे साथी,सखा,बंधूगण सब ही हमको जान गए,
ऐ भोली अनजान, हम पहचान तो तुझमें ढूँढ़ते है|
मुझसे तेरी बातें करते दर-दरवाज़ें-दीवारें,
मेरे घर के आईने तक तेरी सूरत ढूँढ़ते है|
बाज़ारों की रौनक कहती मुझसे के खामोश है तू,
कैसे कहूँ मैं सदाएँ तेरी कान यूँ मेरे ढूँढ़ते है|
तेरे साथ चले हम जब भी दिल ये खुद पर नाज़ करे,
तन्हा बैठे लम्हें अब तक तेरे किस्से ढूँढ़ते है|
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