तलाश

Filed under: by: vinay sehra

अनजाने लोगों के बीच हम अक्सर तुझको ढूँढ़ते है,
तेरे साथ रहकर कभी हम तुझमें खुद को ढूँढ़ते है |

पहले तो इक अंश था तेरा,अब पूरा पहचान गए,

कली प्यार की बोई थी अब पूरा पौधा ढूँढ़ते है|

आँखों से अब किसको देखे हमको ये मालूम नहीं,

जिसमें देखे तुझको देखे सबमें तुझको ढूँढ़ते है|

तेरे साथी,सखा,बंधूगण सब ही हमको जान गए,

ऐ भोली अनजान, हम पहचान तो तुझमें ढूँढ़ते है|

मुझसे तेरी बातें करते दर-दरवाज़ें-दीवारें,

मेरे घर के आईने तक तेरी सूरत ढूँढ़ते है|

बाज़ारों की रौनक कहती मुझसे के खामोश है तू,

कैसे कहूँ मैं सदाएँ तेरी कान यूँ मेरे ढूँढ़ते है|

तेरे साथ चले हम जब भी दिल ये खुद पर नाज़ करे,

तन्हा बैठे लम्हें अब तक तेरे किस्से ढूँढ़ते है|

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