कभी तो अपने दिल कि सुनते, कभी तो विनय समझते तुम
सपनों में जो कर लेते हो, कभी तो होश में करते तुम |
बड़ी शान से आगे बढ़ते, नई मंज़िले चढ़ते तुम,
पहले लेकिन कदम उठाकर रस्ते पर तो रखते तुम|
‘खुद कि खातिर जीता हूँ’ कहते हो सारी दुनिया से
खुद से करके आँख मिचोली क्या कुछ नहीं हो करते तुम|
नींदों में तुम खोये रहते, सपनें मानो सच्चे थे,
सही दिशा में मेहनत करके सपनों में ही जगते तुम|
आगे बढ़ने की जो ठानी अपने पीछे बिखर गए
डोरी कच्ची थी रिश्ते की बाँध के कसके रखते तुम,
बड़ी नौकरी, बड़ा है ओहदा, जेब में पैसे ठूंस लिए
घर के आइनों में देखो खुद ही पर हो हँसते तुम,
सपनें देखे पूरे हो गए, मंज़िल भी तो पा ली है
सोचो विनय हो किसकी खातिर विनय को विनय समझते तुम|