विनय को विनय समझते तुम

Filed under: by: vinay sehra

कभी तो अपने दिल कि सुनते, कभी तो विनय समझते तुम

सपनों में जो कर लेते हो, कभी तो होश में करते तुम |


बड़ी शान से आगे बढ़ते, नई मंज़िले चढ़ते तुम,

पहले लेकिन कदम उठाकर रस्ते पर तो रखते तुम|


खुद कि खातिर जीता हूँकहते हो सारी दुनिया से

खुद से करके आँख मिचोली क्या कुछ नहीं हो करते तुम|


नींदों में तुम खोये रहते, सपनें मानो सच्चे थे,

सही दिशा में मेहनत करके सपनों में ही जगते तुम|


आगे बढ़ने की जो ठानी अपने पीछे बिखर गए

डोरी कच्ची थी रिश्ते की बाँध के कसके रखते तुम,


बड़ी नौकरी, बड़ा है ओहदा, जेब में पैसे ठूंस लिए

घर के आइनों में देखो खुद ही पर हो हँसते तुम,


सपनें देखे पूरे हो गए, मंज़िल भी तो पा ली है

सोचो विनय हो किसकी खातिर विनय को विनय समझते तुम|

आँसू

Filed under: by: vinay sehra

कभी आँसू की दास्ताँ खुद आँसू सुनाता है
कभी बहते हुए खुद ही में डूब जाता है,
कभी गाल के किसी कोने में जाकर ठहरता है
कभी आँख की सूनी परतों पर सूख जाता है|

कभी अपनी हस्ती पर खुद ही रो पड़ता है
कभी गैर के गम में ये पलकें भिगाता है,
पराई मिट्टी लपकने को आँखों से टपकता है
कभी अपने ही आँगन की खुशबू भूल जाता है|

सूनी करके ये आँखें मामूली बहाने से
जग की जगमग में हँसता है खिलखिलाता है,
बहता है मगर फिर भी ज़माने के सितम सहके
रोता है तो बस इन्सां,ये आँसू मुस्कुराता है |

तलाश

Filed under: by: vinay sehra

अनजाने लोगों के बीच हम अक्सर तुझको ढूँढ़ते है,
तेरे साथ रहकर कभी हम तुझमें खुद को ढूँढ़ते है |

पहले तो इक अंश था तेरा,अब पूरा पहचान गए,

कली प्यार की बोई थी अब पूरा पौधा ढूँढ़ते है|

आँखों से अब किसको देखे हमको ये मालूम नहीं,

जिसमें देखे तुझको देखे सबमें तुझको ढूँढ़ते है|

तेरे साथी,सखा,बंधूगण सब ही हमको जान गए,

ऐ भोली अनजान, हम पहचान तो तुझमें ढूँढ़ते है|

मुझसे तेरी बातें करते दर-दरवाज़ें-दीवारें,

मेरे घर के आईने तक तेरी सूरत ढूँढ़ते है|

बाज़ारों की रौनक कहती मुझसे के खामोश है तू,

कैसे कहूँ मैं सदाएँ तेरी कान यूँ मेरे ढूँढ़ते है|

तेरे साथ चले हम जब भी दिल ये खुद पर नाज़ करे,

तन्हा बैठे लम्हें अब तक तेरे किस्से ढूँढ़ते है|

Filed under: by: vinay sehra

ज़मीं पर लिखी आसमां की तकदीर कब तक देखते,
हम अपने दिल में गुदी तेरी तस्वीर कब तक देखते|

मेरी आँखें तेरी आँखों से मिलकर भी खामोश रही,
दिल की बातों को लफ़्ज़ों के फ़कीर कब तक देखते|

हम तो करते रहते बस तेरी बातें दिल ही से,
लबों पर लगी मन की कड़ी ज़ंजीर कब तक देखते|

सपनों में ही महसूस की तेरी बाहों की नर्मियाँ,
हम अपने दिल की बेबस बुझी ताबीर कब तक देखते|

चाहते थे बयाँ कर दे हम अपना हाल-ए-दिल कभी,
तेरे दिल में मगर किसी गैर की तासीर कब तक देखते|

मुझे मालूम न था......

Filed under: by: vinay sehra

मुझे मालूम न था मेरी चाहत ऐसे भी रंग दिखलाएगी,
तू रहेगी बेखबर और ये दुनिया मुझ पर मुस्कुराएगी|

मेरी चाहत का तेरी तबियत पर क्या ही असर होता,
दिलों के फ़ासलों को ये ज़मीं कैसे मिलाएगी|

तेरे हाथों की लकीरों में चाँद-सितारें विनीत हुए,
मुझ से फकीरों के चिरागों को तू आखिर क्यों जलाएगी|

जहान-ए-हकीकत में अब नहीं बढ़ते कदम मेरे,
ख्वाब-ए-हुकूमत में तो तू ही मेरा घर सजाएगी|

तेरा एहसास ही काफी है मेरे जज़्बातों की खातिर,
तू सामने गर आई ये सांस थम ही जाएगी|

मुझे मालूम न था मेरी चाहत आँखों के दरिया में डूब जाएगी,
तू रहेगी बेखबर और ये दुनिया मुझ पर मुस्कुराएगी|