Filed under: by: vinay sehra

दरख्तों की घनी छाया
तू हमसफ़र,तेरा साया
मैं खुद अपने को खोजूँ
या तेरा दीदार करुँ|

मेरे शब्दों की आँधी में
खो ना जाये नाम तेरा
तुझे दिल में छिपा लूँ
या तूफानों से खिलवाड़ करूँ|

बेबस है ये आंसू
टकराया आज होंठों से
लबों में अश्क दबाऊँ
या आँखों से फरियाद करूँ|

ख्वाबों में है कुछ बूंदें
बहती हुई निर्मल जल-सी,
तेरे आंसू चुरा लूँ
या मैं कत्ल--आम करुँ|

ना कभी कुछ चाहा
ना तुझसे दुआ की है
मैं खुद को मिटा लूँ
या तुझे हर पल याद करूँ|