तलाश

Filed under: by: vinay sehra

अनजाने लोगों के बीच हम अक्सर तुझको ढूँढ़ते है,
तेरे साथ रहकर कभी हम तुझमें खुद को ढूँढ़ते है |

पहले तो इक अंश था तेरा,अब पूरा पहचान गए,

कली प्यार की बोई थी अब पूरा पौधा ढूँढ़ते है|

आँखों से अब किसको देखे हमको ये मालूम नहीं,

जिसमें देखे तुझको देखे सबमें तुझको ढूँढ़ते है|

तेरे साथी,सखा,बंधूगण सब ही हमको जान गए,

ऐ भोली अनजान, हम पहचान तो तुझमें ढूँढ़ते है|

मुझसे तेरी बातें करते दर-दरवाज़ें-दीवारें,

मेरे घर के आईने तक तेरी सूरत ढूँढ़ते है|

बाज़ारों की रौनक कहती मुझसे के खामोश है तू,

कैसे कहूँ मैं सदाएँ तेरी कान यूँ मेरे ढूँढ़ते है|

तेरे साथ चले हम जब भी दिल ये खुद पर नाज़ करे,

तन्हा बैठे लम्हें अब तक तेरे किस्से ढूँढ़ते है|

Filed under: by: vinay sehra

ज़मीं पर लिखी आसमां की तकदीर कब तक देखते,
हम अपने दिल में गुदी तेरी तस्वीर कब तक देखते|

मेरी आँखें तेरी आँखों से मिलकर भी खामोश रही,
दिल की बातों को लफ़्ज़ों के फ़कीर कब तक देखते|

हम तो करते रहते बस तेरी बातें दिल ही से,
लबों पर लगी मन की कड़ी ज़ंजीर कब तक देखते|

सपनों में ही महसूस की तेरी बाहों की नर्मियाँ,
हम अपने दिल की बेबस बुझी ताबीर कब तक देखते|

चाहते थे बयाँ कर दे हम अपना हाल-ए-दिल कभी,
तेरे दिल में मगर किसी गैर की तासीर कब तक देखते|

मुझे मालूम न था......

Filed under: by: vinay sehra

मुझे मालूम न था मेरी चाहत ऐसे भी रंग दिखलाएगी,
तू रहेगी बेखबर और ये दुनिया मुझ पर मुस्कुराएगी|

मेरी चाहत का तेरी तबियत पर क्या ही असर होता,
दिलों के फ़ासलों को ये ज़मीं कैसे मिलाएगी|

तेरे हाथों की लकीरों में चाँद-सितारें विनीत हुए,
मुझ से फकीरों के चिरागों को तू आखिर क्यों जलाएगी|

जहान-ए-हकीकत में अब नहीं बढ़ते कदम मेरे,
ख्वाब-ए-हुकूमत में तो तू ही मेरा घर सजाएगी|

तेरा एहसास ही काफी है मेरे जज़्बातों की खातिर,
तू सामने गर आई ये सांस थम ही जाएगी|

मुझे मालूम न था मेरी चाहत आँखों के दरिया में डूब जाएगी,
तू रहेगी बेखबर और ये दुनिया मुझ पर मुस्कुराएगी|