Filed under: by: vinay sehra

कहाँ है दम इन बादलों में

कोई आके मुझे समझाए,

फूट फूट रो पड़े है

ये भी गरजने के बाद|

दाग

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दाग

ख़त्म हो गए आँसू ना जाने कितने हैं राज़
क्यों करता रहता हूँ फिर भी मैं इतने पाप|

पलकें नाम हैं आज जैसे हो दूब पे ओंस पड़ी,
क्यों होती हैं हर सुबह के बाद अंधेरी रात|

दिखते है कई साए शीशे में पत्थर जैसे,
क्यों नहीं दिखती बस मेरी सूरत जैसी इनमें बात|

कितने रंग बदलती है लिबासों की तरह ये ज़िन्दगी,
क्यों इन रंगों में घुले पागल दिल के जज़्बात|

कई मौसम बदले, कई रातों में बदली शामें,
मोम नहीं है दिल मेरा फिर क्यों है इतने गहरें दाग|