अपंग वर्तमान

Filed under: by: vinay sehra

अपंग वर्तमान

बंधा हुआ हूँ आज
उस पलंग में
अतीत का बिस्तर बिछा के
ओढ़कर यादों की चादर
खुली आँखों में भरकर
अनचाही नींद के सपने
बंद करके रोशनी के सब दरवाज़े
वर्तमान से
तोड़कर रिश्ता
भुलाकर शरीर की हर हलचल
उड़ चला मन और
लिपट गया अतीत के बिस्तर से
मानो लिप्त हो
'आज और कल' |

2 comments:

On May 28, 2009 at 5:47 AM , Unknown said...

bahut badiya

 
On August 21, 2009 at 11:14 AM , Unknown said...

very deep meaning.....nice yar...tum to professional ho ekdum !!!!!!!!!!