एक ख्वाब सो जाता है
हर सुबह
रोशनी की किरणें
एक मुसाफिर की तरह
आँखों के दरवाज़े
दस्तक देती है
और
इन पलकों को खटखटाती हुई
यही चाहती है कि
इस घर में सोए हुए
अन्धेरें सपनों को
रोशनी की इक नई किरण
दिखाई जाए |
'वो किरण '
जो इन बंद आँखों में कैद
ख्वाबों को
इक नयी सुबह दिखाए
वो किरण
जो सपनों को
हकीकत तक ले जाए
पर
ये आँखे
डूबी है उन्ही सपनों में
'वो सपने'
जो सपने बनकर
आँखों में सोते है
वो सपने
जो हकीकत की छाँव में
पलने से डरते है |
'वो किरण'
देर तक
दरवाज़ा खटखटाती है
और पलकें
तब
तक नहीं खुलती
'वो सपने'
जब तक
इन आँखों में खो नहीं जाते|
हर सुबह
मेरे जगने के साथ
एक ख्वाब सो जाता है|
7 comments:
mast..
the poem goes smoothly..
and the ending is just marvellous!!
क्या बात है लड़के, छा गया, तीर मार दिए|
good poem
kavita dil se likhi gayi hai....
ant to dil ko chu gaya
thanks a lot frens....
hmm very emotional poem,touching