एक ख्वाब सो जाता है

Filed under: by: vinay sehra

एक ख्वाब सो जाता है

हर सुबह

रोशनी की किरणें

एक मुसाफिर की तरह

आँखों के दरवाज़े

दस्तक देती है

और

इन पलकों को खटखटाती हुई

यही चाहती है कि

इस घर में सोए हुए

अन्धेरें सपनों को

रोशनी की इक नई किरण

दिखाई जाए |

'वो किरण '

जो इन बंद आँखों में कैद

ख्वाबों को

इक नयी सुबह दिखाए

वो किरण

जो सपनों को

हकीकत तक ले जाए

पर

ये आँखे

डूबी है उन्ही सपनों में

'वो सपने'

जो सपने बनकर

आँखों में सोते है

वो सपने

जो हकीकत की छाँव में

पलने से डरते है |

'वो किरण'

देर तक

दरवाज़ा खटखटाती है

और पलकें

तब

तक नहीं खुलती

'वो सपने'

जब तक

इन आँखों में खो नहीं जाते|

हर सुबह

मेरे जगने के साथ

एक ख्वाब सो जाता है|


7 comments:

On May 4, 2009 at 2:18 AM , Unknown said...
This comment has been removed by the author.
 
On May 4, 2009 at 2:53 AM , नरेन गुप्ता said...

mast..
the poem goes smoothly..
and the ending is just marvellous!!

 
On May 6, 2009 at 8:19 AM , mohit_sards said...

क्या बात है लड़के, छा गया, तीर मार दिए|

 
On May 6, 2009 at 9:58 PM , prashant said...

good poem

 
On May 7, 2009 at 12:27 PM , Unknown said...

kavita dil se likhi gayi hai....
ant to dil ko chu gaya

 
On May 7, 2009 at 12:29 PM , vinay sehra said...

thanks a lot frens....

 
On August 21, 2009 at 11:46 AM , Unknown said...

hmm very emotional poem,touching