कटे पंख
लोग कहते है जो छूता था आसमाँ की बुलंदियों को,
उस पंछी को शायद अब उड़ना नहीं आता|
मुस्कुराते थे जो बगिया में सुनहरे फूल बनकर,
टूटे मेरे उन ख्वाबों को अब खिलना नहीं आता|
काश समझा दे कोई अंखियों के मोती को,
मेरे ग़मों को अश्कों में घुलना नहीं आता|
डरती है तड़पती रूह इक सांस लेने से,
सूखी हुई नदिया को बहना नहीं आता|
मत दबाना जज़्बात सारे दिल में 'विनय' बनकर,
हर होंठ पे मुस्कराहट को सजना नहीं आता|
क्यों समझ में नहीं आती है बात इतनी सी,
हर किसी को दिल ही दिल में मरना नहीं आता|
बिछा दे काश कोई राहों पे काँटों के बिस्तर,
नंगे मेरे पाँवों को अंगारों पे चलना नहीं आता|
हर दूसरा शख्स यहाँ खुद को दोस्त कहता है,
मेरे ही कानों को शायद अब सुनना नहीं आता|
12 comments:
कहने दो लोगों को। आप लिखते रहिये। शानदार! लेकिन भैया ई वर्ड वेरीफ़िकेशन हटाइये।
blog jagat men swagat. rachna umda hai.
aapka kavita likhne ka tarika bahut acha hai...main zyada to nahin jaanta magar mujhe aapki sabhi kavitayen bahut achi lagi
हुज़ूर आपका भी ....एहतिराम करता चलूं .......
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
कृपया एक व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें। मेरा पता है:-
www.samwaadghar.blogspot.com
शुभकामनाओं सहित
संजय ग्रोवर
wah! narayan narayan
बे्हतरीन रचना के लिये बधाई। यदि शब्द न होते तो एह्सास भी न होता। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है। लिखते रहें हमारी शुभकामनाएं साथ है।
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
nice, i liked the flow and the structure in this piece
बहुत अच्छे जी, बहुत अच्छे
काफी अच्छा है बहुत ही सुंदर लाइन है
bahut acha