मुझे मालूम न था मेरी चाहत ऐसे भी रंग दिखलाएगी,
तू रहेगी बेखबर और ये दुनिया मुझ पर मुस्कुराएगी|
मेरी चाहत का तेरी तबियत पर क्या ही असर होता,
दिलों के फ़ासलों को ये ज़मीं कैसे मिलाएगी|
तेरे हाथों की लकीरों में चाँद-सितारें विनीत हुए,
मुझ से फकीरों के चिरागों को तू आखिर क्यों जलाएगी|
जहान-ए-हकीकत में अब नहीं बढ़ते कदम मेरे,
ख्वाब-ए-हुकूमत में तो तू ही मेरा घर सजाएगी|
तेरा एहसास ही काफी है मेरे जज़्बातों की खातिर,
तू सामने गर आई ये सांस थम ही जाएगी|
मुझे मालूम न था मेरी चाहत आँखों के दरिया में डूब जाएगी,
तू रहेगी बेखबर और ये दुनिया मुझ पर मुस्कुराएगी|
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