Filed under: by: vinay sehra

ज़मीं पर लिखी आसमां की तकदीर कब तक देखते,
हम अपने दिल में गुदी तेरी तस्वीर कब तक देखते|

मेरी आँखें तेरी आँखों से मिलकर भी खामोश रही,
दिल की बातों को लफ़्ज़ों के फ़कीर कब तक देखते|

हम तो करते रहते बस तेरी बातें दिल ही से,
लबों पर लगी मन की कड़ी ज़ंजीर कब तक देखते|

सपनों में ही महसूस की तेरी बाहों की नर्मियाँ,
हम अपने दिल की बेबस बुझी ताबीर कब तक देखते|

चाहते थे बयाँ कर दे हम अपना हाल-ए-दिल कभी,
तेरे दिल में मगर किसी गैर की तासीर कब तक देखते|

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