फ़ासला है दो कदम का
दूरियाँ मीलों की है,
पत्थरों की दीवारों में
खिड़कियाँ झीलों सी है|
देखते उन खिड़कियों में
दिखता अपना ही गगन,
तेरे फ़िज़ा की खुशबूओं से
खिलता है मेरा चमन|
बस एक ख्वाहिश है कि
मिलके बैठेंगे और गाएंगे,
मोहब्बत मिली तो गीत
सिर्फ ख़ुशी के गुनगुनाएंगे|
'ना' कहना ना होंठों से तुम
दिल को बस बात बता देना,
आवाजों के गलियारों में
खामोशी का पता देना|
कौन कहता है
हाथों की लकीरों में
छिपी है सरहदें,
ये तो दिलो की बात है
खाहिश और बस जज़्बात है,
मिल जाओ अगर तुम जहाँ में
फिर क्या लकीरें
और क्या फिर कोई बात है|
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2 comments:
बहुत अच्छी रचना!
very nice