दाग
ख़त्म हो गए आँसू ना जाने कितने हैं राज़
क्यों करता रहता हूँ फिर भी मैं इतने पाप|
पलकें नाम हैं आज जैसे हो दूब पे ओंस पड़ी,
क्यों होती हैं हर सुबह के बाद अंधेरी रात|
दिखते है कई साए शीशे में पत्थर जैसे,
क्यों नहीं दिखती बस मेरी सूरत जैसी इनमें बात|
कितने रंग बदलती है लिबासों की तरह ये ज़िन्दगी,
क्यों इन रंगों में घुले पागल दिल के जज़्बात|
कई मौसम बदले, कई रातों में बदली शामें,
मोम नहीं है दिल मेरा फिर क्यों है इतने गहरें दाग|
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4 comments:
gajab sir...........
umda bhavon se purn umda rachna.
बहुत ख़ूब
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baap re!!!! kya baat hai!!!